Add To collaction

नान स्टाप राइटिंग चेलैंज 2022 एडीशन 1 देवकी नंदन( भाग 27)


              शीर्षक :- देवकी नन्दन अथवा यशोदा नन्दन
                            ***************************


             जब कंस को मारने के बाद भगवान श्रीकृष्ण कारागृह में गए और वहां उन्हौने माता देवकी तथा पिता वासुदेव को छुड़ाया।
 तब माता देवकी ने रोते हुए   श्रीकृष्ण से पूछा, "पुत्र हमने सुना है कि   तुम स्वयं नारायण हो, तुम भगवान हो, तुम्हारे पास असीम शक्ति है, फिर तुमने चौदह साल तक कंस को मारने और हमें यहां से छुड़ाने की प्रतीक्षा क्यों की?  तुम चाहते तो जन्म लेते ही कंस का संहार कर सकते थे इससे दो दो माताओं को तुम्हारे विछोह की पीड़ा नही उठानी पड़ती और तुम सिर्फ मेरे ही पुत्र रहते।

               श्रीकृष्ण ने जबाब देते हुए कहा, "क्षमा करें माता, क्या आपने पिछले जन्म में मुझे चौदह वर्ष के लिए वनवास में नहीं भेजा था?

                यह सुनकर माता देवकी आश्चर्यचकित हो गई और फिर उन्हौने पूछा, " बेटा, यह कैसे संभव है? तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?"

 तब  श्रीकृष्ण ने कहा, " माता आपको अपने पूर्व जन्म के बारे में कुछ भी स्मरण नहीं है। परंतु तब आप माता कैकई थीं और पिता वासुदेव ही राजा दशरथ थे।"

देवकी ने पूछा, फिर महारानी कौशल्या कौन हैं?

        श्रीकृष्ण ने कहा, वही तो इस जन्म में माता यशोदा हैं।
आपने तब माता कौशल्या को जिन चौदह वर्ष के बनवास की पीड़ा दी वो भोग आपको भी तो भोगना था।

             मैंने आपको वचन दिया था कि मृत्युलोक में अब जब जन्म लूँगा आपकी कोख से लूँगा लेकिन मैं माता कौशल्या को भी दुखी नहीं करना चाहता था तो उनको बोध था भले ही मैं अगले जन्म में माता कैकेयी के गर्भ से जन्म लूंगा लेकिन मैं कौशल्या पुत्र ही कहलाऊंगा।
अपने राम अवतार के इस कथन को मुझको कृष्ण रूप में पूरा करना था। इसलिए माता कैकेयी ही आप हैं।

           आपके गर्भ से जन्म लेने के बाद भी मुझको हमेशा यशोदानंदन ही कहा जाएगा ये माता कौशल्या की पीड़ा के तप का फल है जो उन्होंने मेरे वनवास के समय सहा।  चौदह साल तक जिनको पिछले जीवन में मां के जिस प्यार से वंचित रहना पड़ा था, वह उन्हें इस जन्म में मेरे द्वारा वापस करना ही था।

                   माता प्रत्येक जीव को इस मृत्युलोक में अपने कर्मों का भोग भोगना ही पड़ता है। यहां तक कि मैं स्वयं भी इससे अछूता नहीं हूँ।

 "स्वकृतस्य फलं भुङ्क्ते नान्यस्तद् भोक्तुमर्हति"
सुखस्य दुःखस्य न कोऽपि दाता परो ददातीति कुबुद्धिरेषा ।
अहं करोमीति वृथाभिमानःस्वकर्मसूत्रे ग्रथितो हि लोकः ॥

      अर्थात माता      मृत्यु लोक में प्राणी जैसा कर्म करता है उसे उस कर्म का वैसा ही फल मिलता रहता है वह अपने कर्मों का फल अपने आप ही भोगता है।

             जीवन में सुख-दुःख किसी अन्य के दिये नहीं होते कोई दूसरा मुझे सुख-दुःख देता है यह मानना व्यर्थ है। हर जीव का समस्त जीवन और सृष्टि स्वकर्म के सूत्र में बंधे हुए हैं। सभी मनुष्य अपने किये हुए अच्छे बुरे कर्मौ का फल ही भोगते है। वह इसका दोष एक दूसरे पर थोपते है।

        माता मैं आपको इस जेल के बन्धन से कोशिश करने पर भी नही छुडा़ सकता था। इसीलिए आपको अपने पूर्व जन्म के कर्मौ का फल ही भुगतना पडा़ है।

         माता अब आपका वह समय समाप्त हो गया है।

नान स्टाप राइटिंग चेलैन्ज के लिए रचना।

नरेश शर्मा  " पचौरी "



   17
5 Comments

Mithi . S

09-Nov-2022 06:05 AM

Very nice

Reply

shweta soni

01-Nov-2022 10:15 AM

Behtarin rachana

Reply

Reena yadav

28-Oct-2022 10:14 PM

👍👍🌺

Reply